Information hindi | By Admin | May 28, 2025
एक छोटी सी तितली थी...
नाज़ुक सी। रंग-बिरंगी। सपनों से भरी हुई।
हर सुबह वो खुले आसमान में उड़ती थी, फूलों पर बैठती थी, और जिंदगी के रंगों को अपने पंखों में समेट लेती थी।
लेकिन फिर एक दिन...
आसमान में बादल छा गए।
पहली बूँद गिरी, फिर दूसरी... और देखते ही देखते, पूरी दुनिया भीग गई।
वो तितली रुक गई। उड़ना छोड़ दिया।
एक हरे पत्ते के नीचे छुप गई।
क्या वो डर गई थी?
नहीं।
वो समझदार थी।
उसे पता था कि बारिश में उड़ना उसके नाज़ुक पंखों को नुकसान पहुँचा सकता है।
उसे मालूम था कि रुकना ज़रूरी है — ताकि कल फिर से ऊँचाईयों तक उड़ सके।
और यही तो असली ज़िंदगी है।
जब तक सब कुछ सही चलता है, हम दौड़ते हैं — सपनों के पीछे, मंज़िलों के पीछे, ज़िम्मेदारियों के पीछे।
लेकिन जैसे ही ज़िंदगी में कोई तूफ़ान आता है — थोड़ा दर्द, थोड़ा अँधेरा, थोड़ी थकान — हम चौंक जाते हैं।
पर उस तितली से कुछ सीखो।
रुकना हार नहीं है।
रुकना एक तैयारी है — अगली उड़ान की।
थोड़ी देर रुक कर साँस लेना, खुद से मिलना, अंदर की टूटन को जोड़ना, और फिर दोबारा उड़ना —
यही तो असली ताक़त है।
क्या तुम्हारी ज़िंदगी में भी अभी कोई बारिश हो रही है?
क्या तुम्हारी उड़ान भी थम गई है?
तो घबराओ मत।
किसी पत्ते के नीचे थोड़ी देर विश्राम करो।
बारिश रुकेगी। सूरज फिर से निकलेगा।
और फिर...
तुम फिर से उड़ोगे — शायद इस बार और भी ऊँचा।
हर तूफ़ान के बाद एक सुनहरी सुबह होती है।
हर रुकावट के बाद एक नई शुरुआत।
और हर तितली की कहानी में एक ऐसा पल ज़रूर आता है —
जब उसकी खामोशी, उसकी सबसे ऊँची उड़ान का आग़ाज़ बन जाती है।