Information hindi | By Admin | Sep 23, 2025
ज़ुबीन गर्ग: आवाज़ जो पुल बन गई, दिलों को जोड़ गई
कभी-कभी कोई कलाकार सिर्फ़ गाने नहीं गाता, बल्कि लोगों की आत्मा में उतर जाता है।
52 वर्षीय असमिया गायक ज़ुबीन गर्ग भी ऐसे ही कलाकार थे। उनकी धुनें सिर्फ़ कानों तक नहीं पहुँचीं, बल्कि असम की मिट्टी और वहाँ के लोगों के जीवन का हिस्सा बन गईं।
19 सितंबर 2025 को सिंगापुर से उनके निधन की खबर आई, और पूरे असम में सन्नाटा छा गया। लोग रोए, लेकिन साथ ही गर्व भी किया — क्योंकि ज़ुबीन ने सिर्फ़ संगीत ही नहीं दिया, बल्कि अपने नाम को गाँव-गाँव तक अमर कर दिया।
“ज़ुबीन गर्ग ब्रिज” – जहाँ संगीत और जीवन मिले
असम के तिनसुकिया जिले का एक छोटा-सा गाँव, थेपाबरी।
वहाँ के ग्रामीणों ने सालों पहले 490 मीटर लंबा बाँस का पुल दिहिंग नदी पर बनाया। यह पुल उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की धड़कन है — खेत तक जाने, बच्चों को स्कूल पहुँचाने, और बाज़ार तक पहुँचने का ज़रिया।
लेकिन असली खासियत यह नहीं है। खासियत यह है कि ग्रामीणों ने इस पुल का नाम रखा: “ज़ुबीन गर्ग ब्रिज”।
सोचिए, कोई गायक इतना प्रिय हो जाए कि लोग अपनी सबसे ज़रूरी राह का नाम उसी पर रख दें।
यही है ज़ुबीन की असली ताक़त। उनकी धुनों ने दिलों को जोड़ा और उनका नाम अब सचमुच गाँव-गाँव, पगडंडी-पगडंडी तक पहुँच गया।
एक आवाज़, हज़ार रूप
ज़ुबीन सिर्फ़ गायक नहीं थे।
उन्होंने 40 से ज़्यादा भाषाओं और बोलियों में लगभग 38,000 गाने गाए।
बॉलीवुड का उनका गीत “या अली” (फिल्म Gangster) आज भी युवाओं की प्लेलिस्ट में ज़िंदा है।
असमिया लोकधुनों को उन्होंने नई जान दी और आधुनिक संगीत में भी उन्हें मिलाकर एक अलग पहचान बनाई।
गायक होने के साथ वे संगीतकार, अभिनेता, लेखक और समाजसेवी भी रहे।
उनका कहना था:
> “संगीत केवल सुनने के लिए नहीं होता, यह जीने का तरीका है।”
लोगों का कलाकार, जनता का बेटा
ज़ुबीन गर्ग बड़े-बड़े मंचों के सितारे थे, लेकिन असली पहचान उन्हें गाँव की चौपालों और कस्बों के उत्सवों ने दी।
कभी किसी स्कूल के लिए चंदा इकट्ठा करना हो, कभी बाढ़ पीड़ितों की मदद करनी हो, ज़ुबीन हमेशा सबसे आगे रहे।
यही कारण है कि उनके निधन के बाद असम सरकार ने तीन दिन का शोक घोषित किया। यह सम्मान सिर्फ़ नेताओं या राजाओं को मिलता है। लेकिन ज़ुबीन ने दिखा दिया कि कलाकार भी जनता के दिल का राजा हो सकता है।
आवाज़ जो हमेशा गूंजेगी
ज़ुबीन गर्ग अब हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी धुनें, उनके गाए शब्द और उनके नाम से बने पुल — सब हमेशा ज़िंदा रहेंगे।
जब भी कोई असमिया बच्चा दिहिंग नदी के उस बाँस के पुल पर कदम रखेगा, वह अनजाने ही ज़ुबीन की आत्मा से जुड़ जाएगा।
निष्कर्ष
ज़ुबीन गर्ग ने हमें सिखाया कि कला कभी सीमाओं में नहीं बंधती।
वह सिर्फ़ असम के नहीं, पूरे भारत के दिलों के गायक थे।
उनकी आवाज़ हमें हमेशा याद दिलाएगी कि एक सच्चा कलाकार मरता नहीं — वह अपनी धुनों और अपने नाम से बार-बार लौटता है।